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अनुराग पदावली -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग मलार[239] सूरदासजी के शब्दों में कोई गोपी कह रही ह-(सखी! मेरे ये) नेत्र (मुझ) घायल पर भी मार (प्रहार) करते हैं। जो छबि मैंने ह्रदय में छिपा रखी थी, उसे (ये) भी जी भरके ढुलका रहे हैं। मोहन के पास स्वयं नहीं गये, यह अच्छा किया; पर अब उन्हें यहाँ से हटा रहे हैं। बलपूर्वक न्हें ले जाने को कहते हैं, अपना हठ ही चलाते हैं। पहले से (ही मोहन के) ऐसे पीछे पड़े कि आते-जाते थकते ही नहीं, इनका गुण कैसे कहा जा सकता है। ये तो पुआल (धान आदि के सूखे डंठल) झाड़ते (जहाँ कुछ नहीं, वहाँ भी खोज करके कुछ पाना चाहते) हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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