अश्वत्थामा के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग

महाभारत सौप्तिक पर्व में ऐषीक पर्व के अंतर्गत तेरहवें अध्याय में संजय ने भीम का गंगातट पर पहुँच अश्वत्थामा को ललकारने और अश्वत्थामा अश्वत्थामा के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]

अश्वत्थामा के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग

जब श्रीकृष्ण अर्जुन और युधिष्ठिर के साथ भीम के निकट पहुँचे उस समय कुन्‍तीकुमार भीमसेन क्रोध से प्रज्‍वलित हो शत्रु का संहार करने के लिए तुले हुए थे। इसलिए वे तीनों महारथी उनसे मिलकर भी उन्‍हें रोक न सके। उन सदृढ़ धनुर्धर तेजस्‍वी वीरों को देखते देखते वे अत्‍यंत वेगशाली घोड़ों के द्वारा भागीरथी के तट पर जा पहुँचे, जहाँ उन महात्‍मा पाण्‍डवों के पुत्रों का वध करने वाला अश्वत्थामा बैठा सुना गया था। वहाँ जाकर उन्‍होंने गंगा जी के जल के किनारे परम यशस्‍वी महात्‍मा श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्यास को अनेकों महर्षियों के साथ बैठे देखा। उनके पास ही वह क्रूरकर्मा द्रोणपुत्र भी बैठा दिखायी दिया। उसने अपने शरीर में घी लगाकर कुश का चीर पहन रखा था। उसके सारे अंगो पर धूल छा रही थी।

कुन्‍तीकुमार महाबाहु भीमसेन बाणसहित धनुष लिये उसकी ओर दौडे़ और बोले- अरे! खड़ा रह, खड़ा रह। अश्वत्थामा ने देखा कि भयंकर धनुर्धर भीमसेन हाथ में धनुष लिये आ रहे हैं। उनके पीछे श्रीकृष्‍ण के रथ पर बैठे हुए दो भाई और हैं। यह सब देखकर द्रोणकुमार के हृदय में बड़ी व्यथा हुई। उस घबराहट में उसने यही करना उचित समझा। उदार हृदय अश्वत्थामा ने उस दिव्य एवं उत्तम अस्त्र का चिन्‍तन किया। साथ ही बायें हाथ से एक सींक उठा ली। दिव्‍य आयुध धारण करके खडे़ हुए उन शूरवीरों का आना वह सहन न कर सका। उस आपत्ति में पड़कर उसने रोषपूर्वक दिव्‍यास्‍त्र का प्रयोग किया और मुख से कठोर वचन निकाला कि ‘यह अस्त्र समस्‍त पाण्‍डवों का विनाश कर डाले’। नृपश्रेष्ठ! ऐसा कहकर प्रतापी द्रोणपुत्र ने सम्‍पूर्ण लोकों को मोह में डालने के लिए वह अस्त्र छोड़ दिया। तदनन्‍तर उस सींक में काल, अन्‍तक और यमराज के समान भयंकर आग प्रकट हो गयी। उस समय ऐसा जान पड़ा कि वह अग्नि तीनों लोकों को जलाकर भस्‍म कर डालेगी।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 13 श्लोक 1-22

सम्बंधित लेख

महाभारत सौप्तिक पर्व में उल्लेखित कथाएँ


अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा का वन में विश्राम | अश्वत्थामा के मन में क्रूर संकल्प का उदय | अश्वत्थामा का कृतवर्मा और कृपाचार्य से सलाह लेना | कृपाचार्य द्वारा सत्पुरुषों से सलाह लेने की प्रेरणा देना | अश्वत्थामा द्वारा अपना क्रुरतापूर्ण निश्चय बताना | कृपाचार्य द्वारा अगले दिन युद्ध करने की सलाह देना | अश्वत्थामा का उसी रात्रि आक्रमण का आग्रह | अश्वत्थामा और कृपाचार्य का संवाद | अश्वत्थामा का पांडवों के शिबिर की ओर प्रस्थान | अश्वत्थामा द्वारा शिबिरद्वार पर उपस्थित पुरुष पर प्रहार | अश्वत्थामा का शिव की शरण में जाना | अश्वत्थामा द्वारा शिव की स्तुति | अश्वत्थामा के सामने अग्निवेदी और भूतगणों का प्राकट्य | अश्वत्थामा द्वारा शिव से खड्ग प्राप्त करना | अश्वत्थामा द्वारा सोये हुए पांचाल आदि वीरों का वध | कृतवर्मा और कृपाचार्य द्वारा भागते हुए सैनिकों का वध | दुर्योधन को देखकर कृपाचार्य और अश्वत्थामा का विलाप | पांचालों के वध का वृतांत सुनकर दुर्योधन का प्राण त्यागना

ऐषीक पर्व

युधिष्ठिर का अपने पुत्रों एवं पांचालों के वध का वृतांत सुनकर विलाप | युधिष्ठिर का मारे हुए पुत्रादि को देखकर भाई सहित शोकातुर होना | युधिष्ठिर एवं द्रौपदी का विलाप | द्रौपदी द्वारा अश्वत्थामा के वध का आग्रह | भीमसेन का अश्वथामा को मारने के लिए प्रस्थान | श्रीकृष्ण द्वारा अश्वत्थामा की चपलता तथा क्रूरता का वर्णन और भीम की रक्षा का आदेश | श्रीकृष्ण, अर्जुन और युधिष्ठिर का भीमसेन के पीछे जाना | अश्वत्थामा के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | अर्जुन के द्वारा ब्रह्मास्त्र का प्रयोग | ब्रह्मास्त्र को शांत कराने हेतु वेदव्यास और नारद का प्रकट होना | अर्जुन द्वारा अपने ब्रह्मास्त्र का उपसंहार | अश्वत्थामा का मणि देकर पांडवों के गर्भों पर दिव्यास्त्र छोड़ना | श्रीकृष्ण से शाप पाकर अश्वत्थामा का वन को प्रस्थान | पांडवों का मणि देकर द्रौपदी को शांत करना | युधिष्ठिर का समस्त पुत्रों और सैनिकों के मारे जाने के विषय में श्रीकृष्ण से पूछना | श्रीकृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से महादेव की महिमा का प्रतिपादन | महादेव के कोप से देवता, यज्ञ और जगत की दुरवस्था | महादेव के प्रसाद से सबका स्वस्थ हो जाना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः