आँगन खेलत घुटुरुनि धाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ



आँगन खेलत घुटुरुनि धाए।
नील-जलद-अभिराम स्याम तन, निरखि जननि दोउ निकट बुलाए।
बंधुक-सुमन-अरुन-पद-पंकज, अंकुस प्रमुख चिह्न बनि आए।
नूपुर-कलख मनु हंसनि सुत रचे नीड़, दै बांह बसाए।
कटि किंकिनि बर हार ग्रीवदर, रुचिर बाहु भूषन पहिराए।
उर श्रीबच्छ मनोहर हरि-नख, हेम-मध्य मनि-गन बहु लाए।
सुभग चिबुक, द्विज-अधर-नासिका स्रवन-कपोल मोहिं सुठि भाए।
भ्रुव सुंदर, करुना-रस-पूरन लोचन मनहु जुगल जल-जाए।
भाल बिसाल ललित लटकन-मनि, बाल-दसा के चिकुर सुहाए।
भानौ गुरु-पनि-कुज आगै करि, ससिहिं मिलन तम के गन आए।
उपमा एक अभूत भई तब, जब जननी पट पीत उड़ाए।
नील जलद पर उडुगन निरखत, तजि सुभाव मनु तड़ित छपाए।
अंग-अंग-प्रति मार- निकर मिलि, छवि-समूह लै-लै मनु छाए।
सूरदास सो क्यौं करि बरनै, जो छबि निगम नेति करि गाए।।104।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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