आछौ गात अकारथ गारयौ।
करी न प्रीति कमल-लोचन सौं, जनम जुवा ज्यौं हारयौ।
निसि-दिन विषय-विलासनि विलसत, फूटि गई तब चारयौ।
अब लाग्यौ पछितान पाइ दु:ख, दीन, दई कौ मारयौ।
कामी, कृपन, कुचील, कुदरसन, को न कृपा करि सारयौ।
तातै कहत दयाल देव मनि, काहै सूर बिसारयौ।।101।।