आजु हो निसान बाजै, नंद जू महर के।
आनँद-मगन नर गोकुल सहर के।
आनँद भरी जसोदा उमँगि अंग न माति, आनंदित भई गोपी गावतिं चहर के।
दूध-दघि-रोचन कनक-थार लै लै चलीं, मानौ इंद्र-बधू जुरीं पाँतिनि बहर के।
आनंदित ग्वाल-बाल, करत विनोद ख्याल, भुज भरि-भरि धरि अंकम महर के।
आनँद-मगन धेनु स्रवैं थनु पय-फेनु, उमँग्यौ जमुन-जल उछलि लहर के।
अँकुरित तरु-पात, उकठि रहे जे गात, बन-बेली प्रफुलित कलिनि कहर के।
आनँदित, बिप्र, सूत, मागध, जाचक-गन उमँगि असीस देत सब हित हरि के।
आनँद-मगन सब अमर गगन छाए पुहुप विमान चढ़े पहर पहर के।
सूरदास प्रभु आइ गोकुल प्रकट भए, संतनि हरष, दुष्ट-जन-मन धरके॥30॥