आधौ श्रीवृषभानु कौ आधौ दीन्हौ तोहि।
राज सुहाग बढ़ौ सबै, कहा निहोरौ मोहि।।
अब गावहु करि सगुन बोलि मुख अमृत बानी।
दूलह श्रीनँदलाल, दुलहिनी रुकमिनि रानी।।
याकौ जननी दीजियौ, करत सखिनि सौ नेह।
हौ जदुपति घर जाति हौ, जाकी है यह देह।।
अंबर बानी भई सजल बादर दल छाए।
देव तैतिसौ कोटि जु जज्ञ तमासे आए।।
हरन रुकमिनी होत है दुहूँ ओर भइ भीर।
अति अघात सूझत नहीं, चलहि वज्र ज्यो तीर।।