(एरी) आनँद सौं दधि मथति जसोदा, धमकि मथनियाँ घूमै।
निरतत लाल ललित मोहन, पग परत अटपटे भू मैं।
चारु चखोड़ा पर कुंचित कच, छबि मुक्ता ताहू मैं।
मनु मकरंद-बिंदु लै मधुकर, सुत-प्यावन-हित झूमै।
बोलत स्याम तोतरी बतियाँ, हँसि-हँसि दतियाँ दूमै।
सूरदास वारी छबि ऊपर जननि कमल-मुख चूमै।।147।।