आपु चढ़ै ब्रज-ऊपर काल।
कहाँ निकसि जिऐ को राखै, नंद कहत बेहाल।
मोहिं नहीं जिय कौ डर नैंकुहुँ , दोउ सुत कौं डरपाउँ।
गाउँ तजौं, कहुँ जाउँ निकसि लै, इनहीं काज पराउँ।
अब उबार नहिं दीसत कतहूँ, सरन राखि को लेइ।
सूर स्याम कौं बरजति माता, बाहिर जान न देइ।।528।।