उग्रसेन कौं दियौ हरि राज।
आनँद मगन सकल पुरवासी, चँवर डुलावत श्री व्रजराज।।
जहाँ तहाँ तै जादव आए, कंस डरनि जे गए पराइ।
मागध सूत करत सब अस्तुति, जै जै जै श्री जादवराइ।।
जुग जुग बिरद यहै चलि आयौ, भए बलि के द्वारै प्रतिहार।
'सूरदास' प्रभु अज अविनासी, भक्तनि हेत लेत अवतार।।3085।।