ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मारू


ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही।
वृंदावन गोकुल बन उपवन, सघन कुज की छाही।।
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत।
माखन रोटी दह्यौ सजायौ, अति हित साथ खवावत।।
गोपी ग्वाल बाल सँग खेलत, सब दिन हँसत सिरात।
'सूरदास' धनिधनि ब्रजवासी, जिनसौ हित जदुतात।।4156।।

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