ऊधौ सूधै नैकु निहारौ।
हम अबलनि कौ सिखवत आए, सुन्यौ सयान तिहारौ।।
निरगुन कहौ कहा कहियत है, तुम निरगुन अति भारी।
सेवत सुलभ स्याम सुंदर कौ, मुक्ति लही हम चारी।।
हम सालोक्य, सरूप, सायुज्यौ, रहतिं समीप सदाई।
सो तजि कहत और की औरै, तुम अलि बडे अदाई।।
हम मूरख तुम बड़े चतुर हौ, बहुत कहा अब कहिऐ।
वे ही काज फिरत भटकत कत, अब मारग निज गहिए।।
तुम अज्ञान कतहि उपदेसत, ज्ञान रूप हमही।
निसि दिन ध्यान ‘सूर’ प्रभु कौ अलि, देखत जित तितही।।3900।।