ऐसे सुने नंदकुमार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


ऐसे सुने नंदकुमार।
नख निरखि ससि कोटि वारत, चरन कमल अपार।।
जानु जघ निहारि करभा, करनि डारत वारि।
काछनी पर प्रान वारत, देखि सोभा भारि।।
कटि निरखि तनु सिंह वारत, किंकिनी जु मराल।
नाभि पर ह्रद आपु वारत, रोम-अलि अलिमाल।।
हृदय मुक्तामाल निरखत, बारी अवलि बलाक।
करज कर पर कमल वारत, चलति जहँ तहँ साक।।
भुजनि पर बार नाग वारत, गए भागि पताल।
ग्रीव की उपमा नहीं कहुँ, लसति परम रसाल।।
चिबुक पर चित वारि डारत, अधर अंबुज लाल।
बँधुक, विद्रुम, बिंब वारत, इ भए बेहाल।।
बचन सुनि कोकिला वारति, दसन दामिनी काँति।
नासिका पर कीर वारत, चारु लोचन भाँति।।
कज, खजन, मीन, मृग सावकहु डारन वारि।
भ्रकुटि पर सुरचाप वारन तरनि कुंडल हारि।।
अलक पर वारति अंध्यारी, तिलक भाल सुदेस।
‘सूर’ प्रभु सिर मुकुट धारे, धरे नटवरवेष।।1835।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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