कछु दिन ब्रज औरौ रहौ 3 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


नृपति कहै सोइ कीजियै, हरि होरी है।
क्यौ राखियै बिबेक, अहो हरि होरी है।।
आठै सुनि सब सजि भए, हरि होरी है।
राजा की रुचि जानि, अहो हरि होरी है।।
करहु क्रिया तैसी सबै, हरि होरी है।
आयसु माथै मानि, अहो हरि होरी है।।
नवमी नवसत साजि कै, हरि होरी है।
करि सुगंध उपहार, अहो हरि होरी है।।
मनहुँ चलीं मिलि मेलि कै, हरि होरी है।
मनसिज भवन जुहार, अहो हरि होरी है।।
दसमी दस दिसि सोधि कै, हरि होरी है।
बोले राजा राह, अहो हरि होरी है।।
काज करहु रुचि आपनी, हरि होरी है।
तौ यह काज सिराइ, अहो हरि होरी है।।
सुनि आयसु एकादशी, हरि होरी है।
बोले सब सिर नाइ, अहो हरि होरी है।।
जग जीतहु बल आपनैं, हरि होरी है।
ज्ञान बिराग छंड़ाइ, अहो हरि होरी है।।

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