गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-8 : अध्याय 11
प्रवचन : 7
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः। अब देखो, इसी में यह प्रेरणा भरी हुई है कि आप जो अपना काम करते हैं, उसको कीजिये। वह कैसे? यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्। ये सब लोग चलते-फिरते कैसे हैं? अभी आत्मरस तो बना नहीं- आत्मबटी भी नहीं बनी-कलेजा, किडनी बदल देते हैं। अंग-अंग बदल देते हैं। वह सब ठीक है, लेकिन कोई चैतन्यवटी बनाकर उसे मुर्दे में डाल दिया करे। अभी तो ऐसा कोई तत्त्व प्रकट हुआ नहीं है, जिसमें चैतन्यरस, चैतन्यवटी बन सके। उसका आविष्कार नहीं हुआ है। तो ये सब चलते-फिरते कैसे है? हमारी जो धड़कन है, यह पिता जी के वीर्य में भी चल रही थी, माता के पेट में भी चल रही थी और मरणपर्यन्त-अन्तिम क्षण तक चलती है-यह अपना काम करती है। धड़कन अपना काम बन्द नहीं करती। ये बाबा जी लोग कहीं-कहीं नुमाइश करते हैं-कि हम अपनी धड़कन बन्द कर लेते हैं, यह एक मिथ्या अपचार है। इसमें कुछ सच्चाई नहीं है। हाँ, उसको हम ग्रहण नहीं कर पाते हैं। यह बात दूसरी है, लेकिन वह बन्द नहीं होती है। वह तो प्राणन शक्ति है शरीर में-शरीर में एक धारणी शक्ति होती है पृथ्वी की और आप्यायनी शक्ति होती है जल की। और प्रकाशिनी शक्ति होती है तेज की-तेजस्विनी और चालिनी शक्ति होती है वायु की और आधार-शक्ति होती है आकाश की और वह सबके शरीर में एक सरीखी रहती है, परन्तु चैतन्य रस के सम्बन्ध से ही सब-का-सब काम होता है। यह जो हमारी धड़कन है, यह आपका काम कभी बन्द नहीं करती और पृथ्वी-शक्ति, जल की शक्ति, वायु की शक्ति, अग्नि की शक्ति, आकाश की शक्ति, कभी काम बन्द नहीं करती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 18.46
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