गीता दर्शन -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज
भाग-9 : अध्याय 12
प्रवचन : 5
अब देख ले मेरे प्यारे अर्जुन, ‘ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः’। जो हमारे सामने बड़े-बड़े योधा दिखायी पड़ रहे हैं; युद्ध करने में बड़े निपुण-दोनों सेनाओं में-जो सामने धनुष, बाण, तलवार, तरकस लेकर खड़े हैं- तुम इनको मारो, चाहे न मारो- अर्जुन तुम रहो, ये नहीं रहेंगे। तुम जो सोचते हो कि ये बने रहेंगे-सो ये बने नहीं रहेंगे। तुम्हारे बिना भी-तुम धनुष-बाण फेंक दो-अपने हाथ को निकम्मा बना लो- इनको कुछ न कहो तब भी यह पक्का है कि ये नहीं रहेंगे। जो बुरा है वह भी नहीं रहेगा, जो भला है वह भी नहीं रहेगा। यह अपने मन में आग्रह का ग्रह नहीं बसाना चाहिए। ज्योतिषी कोई यहाँ होंगे तो बुरा मानेंगे। ज्योंतिषी लोग आते हैं तो अपने साथ कोई-न-कोई दो चार ग्रह लेकर आते हैं, उनके पीछे-पीछे चलते हैं। यह प्रकृति का नियम है कि ये जो आसमान में ग्रह हैं उनमें से किस ग्रह का इस पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ता है- यह निकालने के लिए तो गणित है और पृथ्वी के किस अंश पर किस ग्रह का प्रभाव पड़ेगा, यह भी ज्योतिष से निकाला जा सकता है, इसका गणित है। परन्तु एक व्यक्ति पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसको निकालने के लिए कोई गणित नहीं है। अपनी-अपनी मान्यताएँ हैं। जैसे डाँक्टर कोई दवा रोगी को देता जाय और सौ रोगियों को दिया और उसमें से तीस-चालीस तक मर जायँ तब तो वह उस दवा को बुरा नहीं मानता है। लेकिन पचास-साठ मर जायँ तो उस दवा को बुरा मानने लगता है। इसी प्रकार लोक व्यवहार में अनुभव किया जाता है। डाँक्टर लोग यहाँ बैठे होंगे-हमारे गाँव में यह बात कही जाती है कि जो पहले सौ रोगी को मार लेता है वह अच्छा डाँक्टर होता है। आकाश में चन्द्रमा है वह महीने के कम-से-कम साढ़े छः, पौने सात दिन तक सबको खराब रहता है। चतुर्थ में, अष्टम में, द्वादश में। अगर ज्योतिषी को राहु-केतु नहीं मिलेंगे तब वह कह देगा कि चन्द्रमा की ही पूजा करवाओ। यह तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। डाँक्टर के पास जाओ और वह डिस्टल वाटर का भी इंजेक्शन न लगावे तो उसकी फीस कैसे मिलेगी? ये जो मान्यताएँ (दुराग्रह) अपने मन में बैठ गयीं, ये छोटे-छोटे ग्रह हैं। लेकिन सबसे बड़ा मन में दुराग्रह है, संग्रह है, परिग्रह है-ये सब ग्रह-राहु केतु, शनैश्चर-ये सब-के-सब तुम्हारे हृदय में रहते हैं। आग्रहग्रहग्रहीता हो गये हो। दुराग्रह छोड़ो। तुम्हारे होने-न-होने से दुनिया का कुछ बना-बिगड़ा नहीं। बड़े-बड़े अवतार हुए। चले गये। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि आये चले गये। इस संसार की गति में क्या फर्क पड़ा है? कहाँ इस संसार की गति में फर्क पड़ा है? इसीलिए जो अवधूत होते हैं, जो विरक्त होते हैं, जो सृष्टि के रहस्य को समझने वाले होते हैं वे कहते हैं-चाहे बायें, चाहे दाहिने-यहाँ यों भी वाह-वाह है, यहाँ यों भी वाह-वाह है। राजी हैं हम उसी में जिसमें तेरी रजा है। महात्माओं की दृष्टि बड़ी विलक्षण होती है। इसलिए अर्जुन देखो-कोई रहेगा तो नहीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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