घन गरजत माधौ बिनु माई।
इंद्र कोप करि पहिलै दाव लियौ, पावस रितु ब्रज खबरि जनाई।।
पिय पिय सब्द चातकहु बोल्यौ, मधुर वचन कोकिला सुनाई।
हरि सँदेस सुनि हमहि निदरि पुनि, चमकि दामिनी देत दिखाई।।
बाल चरित भावते जी के, सुमिरि स्याम की सुरति जु आई।
'सूरदास' प्रभु बेगि मिलौ किन, विरह सूल कैसै करि जाई।। 3318।।