चलि राधे हरि बोली री।
उठि चलि बेगि, गहरू कत लाबति, बचन स्याम की डोली री।।
तनु जोवन ऐसै चलि जैहै, जनु फागुन की होली री।
भोजि बिनसि जाइहि छिनु भीतर, जनु कागद की चोली री।।
तोपर कृपा भई मोहन की, छाँड़ि सबै चौछौली री।
'सूरदास' स्वामी मिलिबे कौ, तातै तू निरमौली री।।2588।।