चारु चितौनि सु चंचल डोल।
कहि न जाति मन मैं अति भावति, कछु जु एक उपजति गति गोल।।
मुरली मधुर बजावत गावत, चलत करज अरु कुंडल लोल।
सब छवि मिलि प्रतिबिंब बिराजत, इंद्रनील-मनि-मुकुर कपोल।।
कुंचित केस सुगंध सुवसि मनु, उड़ि आए मधुपति के टोल।
‘सूर’ सुभ्रुव, नासिका मनोहर, अनुमानत अनुराग अमोल।।1793।।