दंपति कुंजद्वार खरे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


दंपति कुंजद्वार खरे।
सिथिल अंग मरगजे अंबर, अतिहि रूप भरे।।
सुरतहि सब रैनि बीती, कोक पूरन रंग।
जलद दामिनि संग सोहत, भरे आलस अंग।।
चकृत ह्वै ब्रजनारि निरखति, मनौ चंद चकोर।
'सूर' प्रभु वृषभानुतनया, बिलसि रति-पति-जोर।।2471।।

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