धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप

महाभारत कर्ण पर्व के अंतर्गत द्वितीय अध्याय में वैशम्पायन ने धृतराष्ट्र और संजय के वार्तालाप करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप करना

वैशम्‍पायन जी ने कहा- महाराज! कर्ण के मारे जाने पर गवल्‍गणपुत्र संजय अत्‍यन्‍त दुखी हो वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा उसी रात में हस्तिनापुर जा पहुँचे। उस समय उनका चित अत्‍यन्‍त उद्विग्न हो रहा था। हस्तिनापुर में पहुँचकर वे धृतराष्ट्र के उस महल में गये, जहाँ रहने वाले बन्‍धु-बान्‍धव प्रायः नष्‍ट हो चुके थे। मोहवश जिनके बल और उत्‍साह नष्‍ट हो गये थे, उन राजा धृतराष्ट्र का दर्शन करके संजय ने उनके चरणों में मस्‍तक झुकाकर हाथ जोड़ प्रणाम किया। राजा धृतराष्ट्र का यथायोग्‍य सम्‍मान करके संजय ने ‘हाय! बड़े कष्‍ट की बात है’ ऐसा कहकर फिर इस प्रकार वार्तालाप आरम्‍भ किया -‘पृथ्‍वीनाथ! मैं संजय हूँ। आप सुख से तो हैं न? अपने ही अपराधों से विपति में पढ़कर आज आप मोहित तो नहीं हो रहे हैं? विदुर, द्रोणाचार्य, भीष्‍म और श्रीकृष्‍ण के कहे हुए हितकारक वचन आने स्‍वीकार नहीं किये थे। अब उन वचनों को बारंबार याद करके क्‍या आपको व्‍यथा नहीं होती?
सभा में परशुराम, नारद और महर्षि कण्व आदि की कही हुई बातें आपने नहीं मानी थीं। अब उन्‍हें स्‍मरण करके क्‍या आपके मन में कष्‍ट नहीं हो रहा है? आपके हित में लगे हुए भीष्‍म, द्रोण आदि जो सुहृद युद्ध में शत्रुओं के हाथ से मारे गये हैं, उन्‍हें याद करके क्‍या आप व्‍यथा का अनुभव नहीं करते हैं? हाथ जोड़कर ऐसी बातें कहने वाले सूतपुत्र संजय से दुःखातुर राजा धृतराष्ट्र ने लंबी साँस खींचकर इस प्रकार कहा-

धृतराष्ट्र बोले– संजय! दिव्यास्त्रों के ज्ञाता शूरवीर गजानन्‍दन भीष्म तथा महाधनुर्धर द्रोणाचार्य के मारे जाने से मेरे मन में बड़ी भारी व्‍यथा हो रही है। जो तेजस्‍वी भीष्‍म साक्षात वसु के अवतार थे और युद्ध में प्रतिदिन दस हजार कवचधारी रथियों का संहार करते थे। उन्‍हीं को यहाँ पाण्डुपुत्र अर्जुन से सुरक्षित द्रुपदकुमार शिखण्डी ने मार डाला है, यह सुनकर मेरे मन में बड़ी व्‍यथा हो रही है। जिन महात्‍मा को भृगुनन्‍दन परशुराम ने उत्तम अस्त्र प्रदान किया था, जिन्‍हें बाल्‍यावस्‍था में धनुर्वेद की शिक्षा देने के लिये साक्षात परशुराम जी ने अपना शिष्‍य बनाया था, जिनकी कृपा से कुन्ती के पुत्र राजकुमार पाण्‍डव महारथी हो गये तथा अन्‍यान्‍य नरेशों ने भी महारथी कहलाने की योग्‍यता प्राप्‍त की थीं, उन्‍हीं सत्‍य प्रतिज्ञ महाधनुर्धर द्रोणाचार्य को युद्धस्‍थल में धृष्टद्युम्न के हाथ से मार गया सुनकर मेरे मन में बड़ी पीड़ा हो रही है। [1]

संसार में चार[2] प्रकार के अस्‍त्रों की विद्या में जिनकी समानता करने वाला दूसरा कोई पुरुष नहीं है, उन्‍हीं द्रोणाचार्य और भीष्म को मारा गया सुनकर मेरे मन में बड़ा दुःख हो रहा है। तीनों लोकों में दूसरा कोई पुरुष जिनके समान अस्त्रवेत्ता नहीं है, उन द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर मरे पुत्रों ने क्‍या किया? महात्‍मा पाण्‍डुपुत्र अर्जुन ने पराक्रम करके संशप्‍तकों की सारी सेना को यमलोक पहुँचा दिया और बुद्धिमान द्रोणकुमार अश्वत्थामा का नारायणास्त्र भी जब शान्‍त हो गया, उस समय अपनी सेनाओं में भगदड मच जाने पर मेरे पुत्रों ने क्‍या किया?

मैं तो समझता हूँ, द्रोणाचार्य के मारे जाने पर मेरे सारे सैनिक भाग चले होंगे, शोक के समुद्र में डूब गये होंगे, उनकी दशा समुद्र में नाव मारी जाने पर वहाँ हाथों से तैरने वाले मनुष्‍यों के समान संकटपूर्ण हो गयी होगी। संजय! जब सारी सेनाएँ भाग गयी, तब दुर्योधन, कर्ण, भोजवंशी, कृतवर्मा, मद्रराज शल्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा, कृपाचार्य, मरने से बचे हुए मेरे पुत्र तथा अन्‍य लोगों के सुख की कान्ति कैसी हो गयी थी? गवल्‍गणकुमार! मेरे तथा पाण्डु के पुत्रों के पराक्रम से सम्‍बन्‍ध रखने वाला यह सारा वृतान्‍त यथार्थ रूप से मुझे कह सुनाओ। संजय ने कहा– माननीय नरेश! आपके अपराध से कौरवों पर जो कुछ बीता है, उसे सुनकर दुःख न मानियेगा; क्‍योंकि दैववश जो दुःख प्राप्‍त होता है, उससे विद्वान पुरुष व्‍यथित नहीं होते हैं। प्रारब्‍धवश मनुष्‍य को अभीष्‍ट वस्‍तु की प्राप्ति हो भी जाती है और नहीं भी होती है। अतः उसकी प्राप्ति हो या न हो, किसी भी दशा में कोई ज्ञानी पुरुष (हर्ष या) कष्‍ट का अनुभव नहीं करता है। धृतराष्ट्र बोले– संजय! मुझे इससे अधिक कोई व्‍यथा नहीं होगी, मैं पहले से ही ऐसा मानता हूँ कि यह अवश्‍यंभावी दैव का विधान है; अतः तुम इच्‍छानुसार सारा वृतान्‍त कहो।[3]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 2श्लोक 1-15
  2. अस्‍त्रों के चार भेद इस प्रकार हैं- मुक्‍त, अमुक्‍त, यन्‍त्र मुक्‍त तथा मुक्‍तामुक्‍त। जो धुनष या हाथ से शत्रु पर फेंके जाते हैं, वे मुक्‍त कहलाते हैं, जैसे बाण आदि। जिन्‍हें हाथ में लिये हुए ही प्रहार किया जाता हैं, उन अस्‍त्रों को अमुक्‍त कहते है, जैसे तलवार आदि। जो यन्‍त्र से फेंके जाते हैं, वे यन्‍त्र मुक्‍त कहलाते हैं, जैसे गोला आदि। तथा जिस अस्‍त्र को छोडकर पुनः उसका उपसंहार किया जाता है, अर्थात जो शत्रु पर चोट करके पुनः प्रयोग करने वाले के हाथ में आ जाते हैं, वे मुक्‍तामुक्‍त कहलाते हैं, जैसे श्रीकृष्‍ण का सुदर्शन चक्र और इन्‍द्र का वज्र आदि।
  3. महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 2 श्लोक 16-26

सम्बंधित लेख

महाभारत कर्ण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जनमेजय का वैशम्पायन से कर्णवध वृत्तान्त कहने का अनुरोध | धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप | दुर्योधन का सेना को आश्वासन तथा कर्णवध का संक्षिप्त वृत्तान्त | धृतराष्ट्र का शोक और समस्त स्त्रियों की व्याकुलता | संजय का कौरव पक्ष के मारे गये प्रमुख वीरों का परिचय देना | कौरवों द्वारा मारे गये प्रधान पांडव पक्ष के वीरों का परिचय | कौरव पक्ष के जीवित योद्धाओं का वर्णन और धृतराष्ट्र की मूर्छा | कर्ण के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप | धृतराष्ट्र का संजय से कर्णवध का विस्तारपूर्वक वृत्तान्त पूछना | कर्ण को सेनापति बनाने के लिए अश्वत्थामा का प्रस्ताव | कर्ण का सेनापति पद पर अभिषेक | कर्ण के सेनापतित्व में कौरवों द्वारा मकरव्यूह का निर्माण | पांडव सेना द्वारा अर्धचन्द्राकार व्यूह की रचना | कौरव और पांडव सेनाओं का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा क्षेमधूर्ति का वध | सात्यकि द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | द्रौपदीपुत्र श्रुतकर्मा द्वारा चित्रसेन का वध | द्रौपदीपुत्र प्रतिविन्ध्य द्वारा चित्र का वध | अश्वत्थामा और भीमसेन का युद्ध तथा दोनों का मूर्छित होना | अर्जुन का संशप्तकों के साथ युद्ध | अर्जुन का अश्वत्थामा के साथ अद्भुत युद्ध | अर्जुन के द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | अर्जुन के द्वारा दण्डधार का वध | अर्जुन के द्वारा दण्ड का वध | अर्जुन के द्वारा संशप्तक सेना का संहार | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धस्थल का दृश्य दिखाते हुए उनकी प्रशंसा करना | पाण्ड्य नरेश का कौरव सेना के साथ युद्धारम्भ | अश्वत्थामा के द्वारा पाण्ड्य नरेश का वध | कौरव-पांडव दलों का भयंकर घमासान युद्ध | पांडव सेना पर भयानक गजसेना का आक्रमण | पांडवों द्वारा बंगराज तथा अंगराज का वध | कौरवों की गजसेना का विनाश और पलायन | सहदेव के द्वारा दु:शासन की पराजय | नकुल और कर्ण का घोर युद्ध | कर्ण के द्वारा नकुल की पराजय | कर्ण के द्वारा पांचाल सेना का संहार | युयुत्सु और उलूक का युद्ध तथा युयुत्सु का पलायन | शतानीक और श्रुतकर्मा का युद्ध | सुतसोम और शकुनि का घोर युद्ध | कृपाचार्य से धृष्टद्युम्न का भय | कृतवर्मा के द्वारा शिखण्डी की पराजय | अर्जुन द्वारा श्रुतंजय, सौश्रुति तथा चन्द्रदेव का वध | अर्जुन द्वारा सत्यसेन का वध तथा संशप्तक सेना का संहार | युधिष्ठिर और दुर्योधन का युद्ध | उभयपक्ष की सेनाओं का अमर्यादित भयंकर संग्राम | युधिष्ठिर के द्वारा दुर्योधन की पराजय | कर्ण और सात्यकि का युद्ध | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार और पांडवों की विजय | कौरवों की रात्रि में मन्त्रणा | धृतराष्ट्र के द्वारा दैव की प्रबलता का प्रतिपादन | संजय द्वारा धृतराष्ट्र पर दोषारोप | कर्ण और दुर्योधन की बातचीत | दुर्योधन की शल्य से कर्ण का सारथि बनने के लिए प्रार्थना | कर्ण का सारथि बनने के विषय में शल्य का घोर विरोध करना | शल्य द्वारा कर्ण का सारथि कर्म स्वीकार करना | दुर्योधन द्वारा शल्य से त्रिपुरों की उत्पत्ति का वर्णन करना | इंद्र आदि देवताओं का शिव की शरण में जाना | इंद्र आदि देवताओं द्वारा शिव की स्तुति करना | देवताओं की शिव से त्रिपुरों के वध हेतु प्रार्थना | दुर्योधन द्वारा शल्य को शिव के विचित्र रथ का विवरण सुनाना | देवताओं का ब्रह्मा को शिव का सारथि बनाना | शिव द्वारा त्रिपुरों का वध करना | परशुराम द्वारा कर्ण को दिव्यास्त्र प्राप्ति का वर्णन | शल्य और दुर्योधन का वार्तालाप | कर्ण का सारथि होने के लिए शल्य की स्वीकृति | कर्ण का युद्ध हेतु प्रस्थान और शल्य से उसकी बातचीत | कौरव सेना में अपशकुन | कर्ण की आत्मप्रशंसा | शल्य द्वारा कर्ण का उपहास और अर्जुन के बल-पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा श्रीकृष्ण-अर्जुन का पता देने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा | शल्य का कर्ण के प्रति अत्यन्त आक्षेपपूर्ण वचन कहना | कर्ण का शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्रदेश के निवासियों की निन्दा | कर्ण द्वारा शल्य को मार डालने की धमकी देना | शल्य का कर्ण को हंस और कौए का उपाख्यान सुनाना | शल्य द्वारा कर्ण को श्रीकृष्ण और अर्जुन की शरण में जाने की सलाह | कर्ण का शल्य से परशुराम द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का अभिमानपूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण का शल्य से ब्राह्मण द्वारा प्राप्त शाप की कथा कहना | कर्ण का आत्मप्रशंसापूर्वक शल्य को फटकारना | कर्ण द्वारा मद्र आदि बाहीक देशवासियों की निन्दा | कर्ण का मद्र आदि बाहीक निवासियों के दोष बताना | शल्य का कर्ण को उत्तर और दुर्योधन का दोनों को शान्त करना | कर्ण द्वारा कौरव सेना की व्यूह रचना | युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन का आक्रमण | शल्य द्वारा पांडव सेना के प्रमुख वीरों का वर्णन | शल्य द्वारा अर्जुन की प्रशंसा | कौरव-पांडव सेना का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम | कर्ण द्वारा कई योद्धाओं सहित पांडव सेना का संहार | भीम द्वारा कर्णपुत्र भानुसेन का वध | नकुल और सात्यकि के साथ वृषसेन का युद्ध | कर्ण का राजा युधिष्ठिर पर आक्रमण | कर्ण और युधिष्ठिर का संग्राम तथा कर्ण की मूर्छा | कर्ण द्वारा युधिष्ठिर की पराजय और तिरस्कार | पांडवों के हज़ारों योद्धाओं का वध | रक्त नदी का वर्णन और पांडव महारथियों द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | कर्ण और भीमसेन का युद्ध | कर्ण की मूर्छा और शल्य का उसे युद्धभूमि से हटा ले जाना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के छ: पुत्रों का वध | भीम और कर्ण का घोर युद्ध | भीम के द्वारा गजसेना, रथसेना और घुड़सवारों का संहार | उभयपक्ष की सेनाओं का घोर युद्ध | कौरव-पांडव सेनाओं का घोर युद्ध और कौरव सेना का व्यथित होना | अर्जुन द्वारा दस हज़ार संशप्तक योद्धाओं और उनकी सेना का संहार | कृपाचार्य द्वारा शिखण्डी की पराजय | कृपाचार्य द्वारा सुकेतु का वध | धृष्टद्युम्न के द्वारा कृतवर्मा की पराजय | अश्वत्थामा का घोर युद्ध और सात्यकि के सारथि का वध | युधिष्ठिर का अश्वत्थामा को छोड़कर दूसरी ओर चले जाना | नकुल-सहदेव के साथ दुर्योधन का युद्ध | धृष्टद्युम्न से दुर्योधन की पराजय | कर्ण द्वारा पांचाल सेना सहित योद्धाओं का संहार | भीम द्वारा कौरव योद्धाओं का सेना सहित विनाश | अर्जुन द्वारा संशप्तकों का वध | अश्वत्थामा का अर्जुन से घोर युद्ध करके पराजित होना | दुर्योधन का सैनिकों को प्रोत्साहन देना और अश्वत्थामा की प्रतिज्ञा | अर्जुन का श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह | श्रीकृष्ण का अर्जुन को युद्धभूमि का दृश्य दिखाते हुए रथ को आगे बढ़ाना | धृष्टद्युम्न और कर्ण का युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | अर्जुन द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा और अश्वत्थामा की पराजय | श्रीकृष्ण का अर्जुन से दुर्योधन के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन से कर्ण के पराक्रम का वर्णन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्साहित करना | श्रीकृष्ण का अर्जुन से भीम के दुष्कर पराक्रम का वर्णन | कर्ण द्वारा शिखण्डी की पराजय | धृष्टद्युम्न और दु:शासन तथा वृषसेन और नकुल का युद्ध | सहदेव द्वारा उलूक की तथा सात्यकि द्वारा शकुनि की पराजय | कृपाचार्य द्वारा युधामन्यु की एवं कृतवर्मा द्वारा उत्तमौजा की पराजय | भीम द्वारा दुर्योधन की पराजय तथा गजसेना का संहार | युधिष्ठिर पर कौरव सैनिकों का आक्रमण | कर्ण द्वारा नकुल-सहदेव सहित युधिष्ठिर की पराजय | युधिष्ठिर का अपनी छावनी में जाकर विश्राम करना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा की पराजय | पांडवों द्वारा कौरव सेना में भगदड़ | कर्ण द्वारा भार्गवास्त्र से पांचालों का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन का भीम को युद्ध का भार सौंपना | श्रीकृष्ण और अर्जुन का युधिष्ठिर के पास जाना | युधिष्ठिर का अर्जुन से भ्रमवश कर्ण के मारे जाने का वृत्तान्त पूछना | अर्जुन का युधिष्ठिर से कर्ण को न मार सकने का कारण बताना | अर्जुन द्वारा कर्णवध हेतु प्रतिज्ञा | युधिष्ठिर का अर्जुन के प्रति अपमानजनक क्रोधपूर्ण वचन | अर्जुन का युधिष्ठिर के वध हेतु उद्यत होना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को बलाकव्याध और कौशिक मुनि की कथा सुनाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को धर्म का तत्त्व बताकर समझाना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञाभंग, भ्रातृवध तथा आत्मघात से बचाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को सान्त्वना देकर संतुष्ट करना | अर्जुन से श्रीकृष्ण का उपदेश | अर्जुन और युधिष्ठिर का मिलन | अर्जुन द्वारा कर्णवध की प्रतिज्ञा और युधिष्ठिर का आशीर्वाद | श्रीकृष्ण और अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन को मार्ग में शुभ शकुन संकेतों का दर्शन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रोत्साहन देना | श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के बल की प्रशंसा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कर्णवध हेतु उत्तेजित करना | अर्जुन के वीरोचित उद्गार | कौरव-पांडव सेना में द्वन्द्वयुद्ध तथा सुषेण का वध | भीम का अपने सारथि विशोक से संवाद | अर्जुन और भीम द्वारा कौरव सेना का संहार | भीम द्वारा शकुनि की पराजय | धृतराष्ट्रपुत्रों का भागकर कर्ण का आश्रय लेना | कर्ण के द्वारा पांडव सेना का संहार और पलायन | अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विनाश करके रक्त की नदी बहाना | अर्जुन का श्रीकृष्ण से रथ कर्ण के पास ले चलने के लिए कहना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का विध्वंस | अर्जुन का कौरव सेना को नष्ट करके आगे बढ़ना | अर्जुन और भीम के द्वारा कौरव वीरों का संहार | कर्ण का पराक्रम | सात्यकि के द्वारा कर्णपुत्र प्रसेन का वध | कर्ण का घोर पराक्रम | दु:शासन और भीमसेन का युद्ध | भीम द्वारा दु:शासन का रक्तपान और उसका वध | युधामन्यु द्वारा चित्रसेन का वध तथा भीम का हर्षोद्गार | भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों का वध | कर्ण का भय और शल्य का समझाना | नकुल और वृषसेन का युद्ध | कौरव वीरों द्वारा कुलिन्दराज के पुत्रों और हाथियों का संहार | अर्जुन द्वारा वृषसेन का वध | कर्ण से युद्ध के विषय में श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत | अर्जुन का कर्ण के सामने उपस्थित होना | कर्ण और अर्जुन का द्वैरथ युद्ध में समागम | कर्ण-अर्जुन युद्ध की जय-पराजय के सम्बंध में प्राणियों का संशय | ब्रह्मा और शिव द्वारा अर्जुन की विजय घोषणा | कर्ण की शल्य से और अर्जुन की श्रीकृष्ण से वार्ता | अर्जुन के द्वारा कौरव सेना का संहार | अश्वत्थामा का दुर्योधन से संधि के लिए प्रस्ताव | दुर्योधन द्वारा अश्वत्थामा के संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करना | कर्ण और अर्जुन का भयंकर युद्ध | अर्जुन के बाणों से संतप्त होकर कौरव वीरों का पलायन | श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन की सर्पमुख बाण से रक्षा | कर्ण के रथ का पहिया पृथ्वी में फँसना | अर्जुन से बाण न चलाने के लिए कर्ण का अनुरोध | श्रीकृष्ण का कर्ण को चेतावनी देना | अर्जुन के द्वारा कर्ण का वध | कर्णवध पर कौरवों का शोक तथा भीम आदि पांडवों का हर्ष | कर्णवध से दु:खी दुर्योधन को शल्य द्वारा सांत्वना | भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदल सैनिकों का वध | अर्जुन द्वारा रथसेना का विध्वंस | दुर्योधन द्वारा कौरव सेना को रोकने का विफल प्रयास | शल्य के द्वारा रणभूमि का दिग्दर्शन | श्रीकृष्ण और अर्जुन का शिविर की ओर गमन | कौरव सेना का शिबिर की ओर पलायन | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को कर्णवध का समाचार देना | कर्णवध से प्रसन्न युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण और अर्जुन की प्रशंसा | कर्णपर्व के श्रवण की महिमा

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः