मधुप आए जोग गथ लै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट


मधुप आए जोग गथ लै, हाँसि औ दुख को सहै।
दंड मुद्रा भस्म कथा मृग त्वचा, आसन दहै।।
स्याम तै कोऊ निठुर नाही, सखा जिन के रावरे।
जरे ऊपर लौन लावहिं, कौन तिनतै बावरे।।
स्याम के गुन कह बखानी, जल बँधे जित थल किए।
संग खेल खिलाइ हमकौं, सोच तौ इतने दिए।।
एक दिन बैकुंठवासी, रास वृंदावन रच्यौ।
सोइ सुरूप बिलोकि माधौ, आइ इहि विधि तन सँच्यौ।।
सारद जामिनि इंदु सोभा, लाज तजि कुजन गई।
बाँसुरी के सब्द सुनि, बधिक का मृगिनी भई।।
साँवरी सी मदन मूरति, हृदय माही रमि रही।
और तौ कछु चित न आवत, कठिन व्रत दृढ़ करि गही।।
मंदभागिनि करमहीनी, दोष काहि लगाइयै।
प्रानपति सौ नेह कीन्हौ, भाग लिखौ सु पाइयै।।
हम न जान्यौ जनम ऐसौ, रैनि कौ सुपनौ भयौ।
अजुली जल घटत जैसै, तैसै ही यह तन गयौ।।
बैद आगै भेद कैसौ, छेद तौ छाती किए।
प्रान दिए हम जगत जानत, सुख सबै कुबिजा लिए।।
जोग जप तप ध्यान पूजा, यह हृदै नहि आवई।
सुधा रस जिन स्वाद चाख्यौ, तिन्हे और न भावई।।
ज्ञान दृढ़ तप ध्यान पूजा, हरि चरन जिनके हिऐ।
विमुख है जे ‘सूर’ स्वामी, फल कहा तिनके जिऐ।।3865।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः