यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 101

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यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

द्वितीय अध्याय

अर्जुन उवाच

स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।
स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्।।54।।

‘समाधीयते चित्तं यस्मिन् स आत्मा एव समाधिः’- जिसमें चित्त का समाधान किया जाय, वह आत्मा ही समाधि है। अनादि तत्त्व में जो समत्व प्राप्त कर ले, उसे समाधिस्थ कहते हैं। अर्जुन ने पूछा- केशव! समाधिस्थ स्थिरबुद्धिवाले महापुरुष के क्या लक्षण हैं? स्थितप्रज्ञ पुरुष कैसे बोलता है? वह कैसे बैठता है? वह कैसे चलता है? चार प्रश्न अर्जुन ने किये। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने स्थितप्रज्ञ के लक्षण बताते हुए कहा-


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

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