यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द
द्वितीय अध्याय
अर्जुन के मन में भी कर्म के प्रति जिज्ञासा हुई। तीसरे अध्याय के आरम्भ में ही उसने कर्मविषयक प्रश्न किया। अतः-
ऊँ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्यविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसम्वादे ‘कर्मजिज्ञासा’ नाम द्वितीयोऽध्यायः।।2।।
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीतारूपी उपनिषद् एवं ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र विषयक श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में ‘कर्म-जिज्ञासा’ नामक दूसरा अध्याय पूर्ण होता है।
इति श्रीमत्परमहंसपरमानन्दस्य शिष्य स्वामीअड़गड़ानन्दकृते श्रीमद्भगवद्गीतायाः ‘यथार्थगीता’ भाष्ये ‘कर्मजिज्ञासा’ नाम द्वितीयोऽध्यायः।।2।।
इस प्रकार श्रीमत् परमहंस परमानन्दजी के शिष्य स्वामी अड़गड़ानन्दकृत ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ में ‘कर्म-जिज्ञासा’ नामक दूसरा अध्याय पूर्ण होता है।
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