यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्दपंचम अध्याय
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः। परमात्मा का साक्षात्कार करके जिनका पाप नष्ट हो गया है, जिनकी दुविधाएँ नष्ट हो गयीं हैं, सम्पूर्ण प्राणियों के हित में जो लगे हुए हैं (प्राप्तिवाले ही ऐसा कर सकते हैं। जो स्वयं गड्ढे में पड़ा है, वह दूसरों को क्या बाहर निकालेगा? इसीलिये करुणा माहपुरुष का स्वाभाविक गुण हो जाता है) तथा ‘यतात्मानः’-जितेन्द्रिय ब्रह्मवेत्ता पुरुष शान्त परब्रह्म को प्राप्त होते हैं। उसी महापुरुष की स्थिति पर पुनः प्रकाश डालते हैं-
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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