श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती पृ. 15

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
प्रथम अध्याय

अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम् ॥10॥
भीष्म पितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीम द्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है ॥10॥

भावानुवाद- यहाँ ‘अपर्याप्तम्’ शब्द का तात्पर्य ‘अपरिपूर्ण’ से है। इसका अर्थ यह है कि कौरवगण पाण्डवों से युद्ध करने में असमर्थ हैं। ‘भीष्माभिरक्षितम्’ - अति सूक्ष्म बुद्धि युक्त तथा शस्त्र-शास्त्र में प्रवीण भीष्म पितामह के द्वारा संरक्षित होने पर भी यह सैन्य बल अपर्याप्त है, क्योंकि भीष्म उभयपक्षपाती हैं। ‘पर्याप्तं भीमाभिरक्षितं’ - किन्तु पाण्डवों की यह सेना स्थूल बुद्धि युक्त (अर्थात् शस्त्र-शास्त्रादि में अपुट) भीम के द्वारा रक्षित होने पर भी पर्याप्त (परिपूर्ण) है अर्थात हमारे साथ युद्ध करने में सक्षम है। उपरोक्त वाक्यों के द्वारा यही निर्दिष्ट होता है कि दुर्योधन अन्तःकरण से भयभीत है।।10।।

सारार्थ वर्षिणी प्रकाशिका वृत्ति- भीष्म पितामह अद्वितीय वीर हैं। पिता के द्वारा इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान मिला है। ये अपराजेय हैं। दुर्योधन के पक्ष से लड़ने पर भी पाण्डवों के प्रति इनका पूर्ण स्नेह है। ये पाण्डवों का भी विनाश नहीं चाहते हैं। उभयपक्षी होने के नाते इनके द्वारा परिचालित सेना युद्ध में दक्षता का परिचयन नहीं दे सकेगी। भीष्म भी अपनी पूर्ण शक्ति का उपयोग पाण्डवों के विरुद्ध नहीं कर सकते हैं। अतः इनके द्वारा परिचालित सैन्य शक्ति को अपर्याप्त कहा गया। दूसरी ओर भीम भीष्म के समान अद्वितीय वीर नहीं होने पर भी अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग स्वपक्ष के विजय के लिए करेंगे। अतएव इनके द्वारा परिचालित सैन्य शक्ति को पर्याप्त कहा गया।।10।।

अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता: ।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्त: सर्व एव हि ॥11॥

अनुवाद- अतएव सभी प्रवेश द्वारों पर अपने-अपने निर्दिष्ट स्थानों पर स्थित होकर आपलोग पितामह भीष्म की ही सब प्रकार से रक्षा करें॥11॥

भावानुवाद - इसलिए आप लोगों (गुरु द्रोणादि) को सावधान रहना पड़ेगा। इसके लिए ही दुर्योधन कहते हैं - ‘अयनेषु’ - व्यूह के प्रवेश द्वारों पर ‘यथाभागमवस्थिताः’ विभक्त होकर अपने-अपने रण क्षेत्र का परित्याग न करें, जिससे कि युद्ध करते-करते वे पीछे से किसी योद्धा के द्वारा निहत न हों। क्योंकि भीष्म का बल ही अभी हमारे लिए प्राण स्वरूप है।।11।।

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श्रीमद्भगवद्गीता -विश्वनाथ चक्रवर्त्ती
अध्याय नाम पृष्ठ संख्या
पहला सैन्यदर्शन 1
दूसरा सांख्यायोग 28
तीसरा कर्मयोग 89
चौथा ज्ञानयोग 123
पाँचवाँ कर्मसंन्यासयोग 159
छठा ध्यानयोग 159
सातवाँ विज्ञानयोग 207
आठवाँ तारकब्रह्मयोग 236
नवाँ राजगुह्मयोग 254
दसवाँ विभूतियोग 303
ग्यारहवाँ विश्वरूपदर्शनयोग 332
बारहवाँ भक्तियोग 368
तेरहवाँ प्रकृति-पुरूष-विभागयोग 397
चौदहवाँ गुणत्रयविभागयोग 429
पन्द्रहवाँ पुरूषोत्तमयोग 453
सोलहवाँ दैवासुरसम्पदयोग 453
सत्रहवाँ श्रद्धात्रयविभागयोग 485
अठारहवाँ मोक्षयोग 501

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