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श्रीमद्भागवत प्रवचन -स्वामी तेजोमयानन्द
2.नाम-महिमा
इस विषय पर विशेष रूप से विचार करने की आवश्यकता है। देखो, हम लोग सोचते हैं कि हमने छोटा-सा पाप किया है, तो हमें छोटा-सा प्रायश्चित कर्म करना पड़ेगा। और यदि हमारा पाप बड़ा है तो उसके लिए उतना ही बड़ा प्रायश्चित कर्म करना पड़ेगा। अब देखो, यदि ऐसा हो, तो जिन्होंने करोड़ों जन्मों में पाप किए होंगे, उनका निस्तार कैसे होगा? इस गणित के अनुसार तो कभी नहीं होगा। बड़े पाप के लिए बड़े प्रायश्चित की जरूरत पड़े तब तो उसका कहीं अंत ही नहीं होगा। लेकिन भगवान ने एक बहुत बढ़िया चीज जगत में रख छोड़ी है। यहाँ जो सबसे बड़ा पाप है उसके लिए भगवान ने एकदम सरल-सा उपाय दे दिया है। यह भगवान का अनुग्रह है। इसी को ‘पोषण’ कहते हैं। यह बात हमारी समझ में नहीं आती है। भगवान ने उसको इतना सरल कर दिया है कि उसकी सरलता के कारण हमें उस पर विश्वास ही नहीं हो पाता। हम सोचते हैं पाप जितना बड़ा हो, जितना घोर हो, उतना ही बड़ा प्रायश्चित होना चाहिए। अब यदि किसी व्यक्ति का पाप अत्यंत घोर हो तो क्या करें? तो बोले मेरा नाम ले लो, छुट्टी हो जाएगी। तुम सब पापों से मुक्त हो जाओगे। देखो, इस बात पर जल्दी विश्वास नहीं होता। है न? जैसे होम्योपैथिक दवाई पर लोगों को शीघ्र विश्वास नहीं होता। किसी आदमी को कुछ हो जाए और उससे कहा जाए कि इतने से ही ठीक हो जाएगा, बड़े-बड़े इन्जेक्शन, आँपरेशन आदि की आवश्यकता नहीं है, तो उसको उस बात पर विश्वास ही नहीं होता। बहुत बार ऐसा होता है, रोग दिखने में बड़ा होता है लेकिन उसका उपाय सरल-सा होता है। उस छोटे उपाय पर हमें शीघ्र विश्वास नहीं होता। इसी प्रकार लोगों को लगता है इतना बड़ा पाप किया है, तो न जाने कौन-कौन से यज्ञ, दान, तप आदि पुण्य कर्म करने पड़ेंगे। बोले न, न, सरल-सा उपाय है, भगवान का नाम ले लो। बस! और कुछ करने की जरूरत नहीं है। अब जरा कथा को भी देख लें। जब अजामिल की मुक्ति हो गई तो आश्चर्य चकित हो कर देवता लोग वैकुण्ठ में गए और भगवान से पूछने लगे कि अजामिल की मुक्ति कैसे हो गई? भगवान ने कहा कि उसने मेरा नाम लिया है इसलिए उसकी मुक्ति हो गई। तो देवता, ऋषि सब कहने लगे, ”भगवन उसने आपका नाम कहाँ लिया?“ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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