हँसि के कह्यो दूतिका आगै, स्यामहिं सुख दै जाइ।
करि असनान, अभूषन अँग भरि, आवति पाछै धाइ।।
यह सुनि हरष भई अतिही सखि, गई तहाँ जहँ स्याम।
अति व्याकुल तनु की सुधि नाही, विह्वल कीन्हौ काम।।
की वन मैं की घरही बैठे, की बासर की जाम।
'सूर' स्याम रसना रट लागी, राधा राधा नाम।।2438।।