हरि जु मुरली तुम्है सुनाऊँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


हरि जु मुरली तुम्है सुनाऊँ।
तुम सुर पुरवौ प्राननाथ प्रभु, हौ अंगुरीनि चलाऊँ।।
मधुरै सुर गति राग रागिनी, भली तान उपजाऊँ।
जिहिं जिहिं भाँति रिझहुँ नंदनंदन, तिहि तिहि भाँति रिझाऊँ।।
अंस बाहु धरि कर पकरौगी, सर्बस सुख हौ पाऊँ।
'सूरदास' अटकै न चलै पल, मन अभिलाष बढाऊँ।।2142।।

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