इहिं बिधि कहा घटैगौ तेरौ ?
नँदनंदन करि घर कौं ठाकुर, आपुन ह्वैं रहु चेरी।
कहा भयौ जो संपति बाढ़ी, कियौ बहुत घर धेरौ।
कहुँ हरि-कथा कहूँ हरि-पूजा, कहुँ संतनि कौ डेरौ।
जो वनिता-सुत-जूथ अकेले, हम-गय-विभव घनेरौ।
सबै समर्पौ सूर स्याम कौं, यह सांचौ मत मेरौ।।266।।