ऊधौ जात ब्रजहिं सुने।
देवकी वसुदेव सुनि कै, हृदै हेत गुने।।
आपु सौ पाती लिखी, कहि धन्य जसुमति नंद।
सुत हमारे पालि पठए, अति दियो आनंद।।
आइकै मिलि जात कबहूँ न, स्याम अरु बलराम।
इहौ कहत पठाइहौं अब, तबहिं तन बिस्राम।।
बाल सुख सब तुमहिं लूट्यौ, मोहिं मिले कुमार।
‘सूर’ यह उपकार तुम तै, कहत बारंबार।। 3442।।