कन्हैया हार हमारौ देहु।
दधि, लवनी, घृत जो कछु चाहौ, सो तुम ऐसेहिं लेहु।
कहा करौं दधि-दूध तिहारौ, मोसौं नाहिंन काम।।
जोबन-रूप दुराइ धरयौ है, ताकौ लेति न नाम।।
नीके मन ह्वै माँगत तुम सौं, बैर नहीं तुम नाखति।
सूर सुनहु री ग्वारि अयानी, अंतर हमसौं राखति।।1481।।