कर कंकन तै भुज टाड़ भई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलाबल


कर कंकन तै भुज टाड़ भई।
मधुबन चलत स्याम मनमोहन, आवत अवधि जु निकट दई।।
पूजत गौरि मनावत संकर, वासर निसि मोहि गनत गई।
पाती लिखत बिरह तन व्याकुल, कागर ह्वै गयौ नीर मई।।
ऊधौ मुख कै वचननि कहियौ, हरि की सूल नितप्रति जु नई।
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस बिनु, मानौ बंसी मीन हई।।4060।।

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