घरही बैठे दोऊ दास।
रिधि सिधि मुक्ति अभय पद दायक, आइ मिले प्रभु हरि अनयास।।
आए सुने स्याम उपवन मैं, भेट लई भुज परम सुवास।
चर्चित गात चद्रमुख चितवत, उर सरवर भयौ कमल बिगास।।
भूपति चँवर बिप्र कर बस्तर, करत बाउ अति अंग हुलास।
आनँद उमँगि चत्यौ नैननिजल, सुरत देव, द्विज, नृप बहु लास।।
जाकौ ध्यान धरत मुनि संकर, सीस जटा दिग अंबर तास।
काम दहन गिरि कंदर आसन, वा मूरति को तऊ पियास।।
भक्तबछलता प्रगट करी है, भयौ बिप्र घर कर कलि ग्रास।
'सूरदास' स्वामी सुमिरन बस, अछत निरजन सेवा पास।। 4306।।