जनम तौ ऐसेहिं बीति गयौ।
जैसे रंक पदारथ पाए, लोभ बिसाहि लयौ।
बहुतक जन्म पुरीष-परायन, सूकर-स्वान भयौ।
अब मेरी मेरी करि बौरे, बहुरौ बीज बयौ।
नर कौ नाम पारगामी हो, सो तोहिं स्याम दयौ।
तै जड़ नारिकेल कपि-कर ज्यौं, पायौ नाहिं पयौ।
रजनी गत बासर मृग तृष्ना रस हरि कौ न चयौ।
सूर नंद-नंदन जेहि बिसरयौ, आपुहिं आपु हयौ।।78।।