परसुराम तेहिं औसर आए।
कठिन पिनाक कहो किन तोरयौ, क्रोधित बचन सुनाए।
विप्र जानि रघुबीर धीर दोउ, हाथ जोरि, सिर नायौ।
बहुत दिननि को हुतौ पुरातन, हाथ छुअत उठि आयौ।
तुम तौ द्विज, कुल पूज्य हमारे, हम-तुम कौन लराई?।
क्रोधवंत कछु सुन्यौ नहीं, लीयौ सायक-धनुष चढ़ाई।
तबहूँ रघुपति कछू न कीन्हौ, धनुष न बान सँभारयौ।
सूरदास प्रभु-रूप समुझि, बन परसुराम पग धारयौ॥28॥