बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 90

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

15. सुनाऊँ किसको मनकी बात

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लोग कहते हैं कि हृदय का दुःख किसी से कह देने से
कुछ हल्का हो जाता है।
होता होगा!
उसी परीक्षा तो सहज में की जा सकती है।
मैं किसी से कहकर देख लूँ कि
जी कुछ हलका हुआ या नहीं।
किंतु कहूँ किससे?
सुनने वाले तो नयी बात सुनना चाहते हैं।
बात में नवीनता न होगा
तो सुनने की उत्सुकता या उसमें रुचि क्यों होने लगी?
किसी से कोई कहने लगे कि
यमुनाजी का पानी हरा होता है,
उसमें कछुए रहते हैं,
पानी बराबर बहता रहता है-
इतने से ही सुनने वाले का धीरज भाग जायेगा।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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