विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
नवम् प्रकरण
देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार[1]
राजा बहुलाश्व,[2] बलि, वसुदेव और श्रुतदेवकृत स्तुतियाँ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. स्क. 10 अ. 85।86
- ↑ भा. स्क. 10 अ. 86 के अंतर्गत राजा बहुलाश्वकृत स्तुति का अर्थ-
हे विभो! आप स्वयंज्योति और सब प्राणियों के साक्षी आत्मा हैं। आपके चरण-कमल का स्मरण करने वाले हम लोगों के आप दृष्टिगोचर हुए हैं।।31।।
आपने जो यह कहा था कि एकान्त में भजन करने वाले भक्त की अपेक्षा बलराम जी, लक्ष्मी जी और ब्रह्मा जी भी मुझे प्रिय नहीं है, अपने उस वचन को सत्य करने के निमित्, आप हमारे दृष्टिगोचर हुए हैं।।32।।
आप द्रव्यहीन और शान्त ऋषियों को अपना स्वरूप तक भी दे देते हैं, ऐसा जानने वाला कौन सा पुरुष आपके चरण कमलों का त्याग करेगा।।33।।
तथा जो आप राजा यदु के वंश में अवतार धारण करके इस संसार में दुःख पाने वाले मनुष्यों के तापों को शान्त करने के लिए त्रिलोकी में सब लोगों के पाप समूह को दूर करने वाले अपने यश को फैलाते हैं: ऐसे सदा प्रकाशमान बुद्धिवाले, सुशान्त तप करने वाले नर नारायण ऋषिरूप आप भगवान् कृष्ण जी को नमस्कार है।।34-35।।
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