मधुकर कौन देस तै आए।
जब तै कूर गए लै मोहन, तब तै भेद न पाए।।
जाने सखा स्यामसुंदर के, अवधि वध उठि धाए।
अंगविभाग नंदनंदन के, इहिं सुरूप दसराए।।
आसन, ध्यान, वायु-आराधन, अलि मन चित तुम ताए।
अतिहि विचित्र सुबुद्धि सुलच्छन, गुनी जोग मत गाए।।
मुद्रा,-भस्म, विषान, त्वचामृग, ब्रज जुवतिनि नहिं भाए।
अतिसी कुसुम बरन मुख मुरली, ‘सूरज’ प्रभु किन ल्याए।।3505।।