मधु गोस्वामी
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पूरा नाम | मधु गोस्वामी |
जन्म भूमि | वंग देश (वंग या 'बंग' बंगाल का प्राचीन नाम है।) |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | वृन्दावन |
प्रसिद्धि | भक्त |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | मधु गोस्वामी को बचपन में ही खेल खेलते समय भगवान की लीला का सरस स्मरण हो जाया करता था। उनके नयन श्यामसुन्दर की अभिराम और मोहिनी झाँकी देखने के लिये विकल हो उठते थे। |
मधु गोस्वामी भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। श्यामसुंदर के प्रति उनकी भक्ति साधना का पता इसी बात से लग जाता है कि बचपन में भी खेल खेलते समय उन्हें भगवान की लीला का सरस स्मरण हो जाया करता था। उनके नयन श्यामसुन्दर की अभिराम और मोहिनी झाँकी देखने के लिये विकल हो उठते थे।
वृन्दावन आगमन
मधु गोस्वामी का जन्म वंग देश में हुआ था। यौवन के प्रथम कक्ष में चरण रखते ही भगवान और उनके ब्रज का विरह मधु गोस्वामी बहुत दिनों तक नहीं सह सके और वृन्दावन के लिये चल पड़े।[1]
नियम ग्रहण
मधु गोस्वामी वृन्दावन पहुँच कर प्रसन्नता के सागर में डूब गए। उन्होंने श्यामवर्ण वाली कालिन्दी के जल में खड़े होकर यह नियम ग्रहण किया कि- "जब तक वंशीवट-तट पर नित्य रास करने वाले प्राणदेवता मदनमोहन दर्शन नहीं देंगे, तब तक अन्न-जल कुछ भी नहीं ग्रहण करूँगा।"
श्यामसुंदर का दर्शन
वृन्दावन के कुंज झूम उठे, उनमें मस्ती छा गयी। नागरिकों, संतो और भक्तों ने मस्तक पर मधु गोस्वामी की चरण-धूलि चढ़ायी। विहारी जी का सिंहासन हिल उठा, वंशीवट की पवित्र रेती में राधारमण ने मधु गोस्वामी को दर्शन दिये। सामने श्यामसुन्दर खड़े हैं। मयूरपिच्छ का मुकुट लोक-लोकान्तर का वैभव समेटकर उनके पीताम्बर पर जो ऐश्वर्य बिखेर रहा था, ब्रह्मा की लेखनी उसकी कल्पना भी नहीं कर पाती। उनके श्याम-अंग का प्रतिबिम्ब यमुना ने अपने अंक में भर लिया। समीर मन्द-मन्द गति से प्रवाहित होकर सलोनी और कोमल लताओं की नमनशीलता से उनके चरण-स्पर्श करने लगा। प्रभु वंशी बजा रहे हैं। मधु गोस्वामी निहाल हो गये, भक्त ने अपने को उनके सुरमुनिदुर्लभ पदपंकज पर निछावर कर दिया। ब्रज मधु गोस्वामी की जयध्वनि से धन्य हो उठा।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 पुस्तक- भक्त चरितांक | प्रकाशक- गीता प्रेस, गोरखपुर | विक्रमी संवत- 2071 (वर्ष-2014) | पृष्ठ संख्या- 590
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