मेह बरसै मंद मंद -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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मेह बरसै मंद मंद।
कुसुभी चीर अंग पर भीजै निरखि हँसे नँदनंद।।
मुरि मुसक्याइ चली फिरि सकुची कर दै आनन चंद।
‘सूर’ स्याम पट पीत उडावत पुलकत आनँदकंद।। 105 ।।

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