यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द पृ. 179

Prev.png

यथार्थ गीता -स्वामी अड़गड़ानन्द

तृतीय अध्याय


उन्होंने कर्म में प्रवृत्त साधकों को चलायमान न करने को कहा; क्योंकि कर्म करके ही उन साधकों को स्थिति प्राप्त करनी है। यदि नहीं करेंगे तो नष्ट हो जायेंगे। इस कर्म के लिये ध्यानस्थ होकर युद्ध करना है। आँखें बन्द हैं इन्द्रियों से सिमटकर चित्त का निरोध हो चला तो युद्ध कैसा? उस समय काम-क्रोध, राग-द्वेष बाधक होते हैं। इन विजातीय प्रवृत्तियों का पार पाना ही युद्ध है। आसुरी सम्पद् कुरुक्षेत्र, विजातीय प्रवृत्ति को शनैः-शनैः छाँटते हुए ध्यानस्थ होते जाना ही युद्ध है। वस्तुतः ध्यान में ही युद्ध है। यही इस अध्याय का सारांश है, जिसमें न कर्म बताया न यज्ञ। यदि यज्ञ समझ में आ जाय तो कर्म समझ में आये। अभी तो कर्म समझाया ही नहीं गया।

इस अध्याय में केवल स्थितप्रज्ञ महापुरुष के प्रशिक्षणात्मक पहलू पर बल दिया गया। यह तो गुरुजनों के लिये निर्देश है। वे न भी करें तो उन्हें कोई क्षति नहीं और न ऐसा करने में उनका अपना कोई लाभ ही है। किन्तु जिन साधकों को परमगति अभीष्ट है उनके लिये विशेष कुछ कहा ही नहीं, तो यह कर्मयोग कैसे हैं? कर्म का स्वरूप भी स्पष्ट नहीं है, जिसे किया जाय; क्योंकि ‘यज्ञ की प्रक्रिया ही कर्म है’- अभी तक उन्होंने इतना ही बताया। यज्ञ तो बताया नहीं, कर्म का स्वरूप स्पष्ट कहाँ हुआ? हाँ, युद्ध का यथार्थ चित्रण गीता में यहीं पाया जाता है।

Next.png

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

यथार्थ गीता -अड़गड़ानन्द
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ सं.
प्राक्कथन
1. संशय-विषाद योग 1
2. कर्म जिज्ञासा 37
3. शत्रु विनाश-प्रेरणा 124
4. यज्ञ कर्म स्पष्टीकरण 182
5. यज्ञ भोक्ता महापुरुषस्थ महेश्वर 253
6. अभ्यासयोग 287
7. समग्र जानकारी 345
8. अक्षर ब्रह्मयोग 380
9. राजविद्या जागृति 421
10. विभूति वर्णन 473
11. विश्वरूप-दर्शन योग 520
12. भक्तियोग 576
13. क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विभाग योग 599
14. गुणत्रय विभाग योग 631
15. पुरुषोत्तम योग 658
16. दैवासुर सम्पद्‌ विभाग योग 684
17. ॐ तत्सत्‌ व श्रद्धात्रय विभाग योग 714
18. संन्यास योग 746
उपशम 836
अंतिम पृष्ठ 871

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः