रमैया बिन नींद न आवै -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहयातना

राग होली


रमैया बिन नींद न आवै ।
नींद न आवे बिरह सतावे, प्रेम की आँच ढुलावै ।।टेक।।
बिन पिया जोत मँदिर अँधियारो, दीपक दाय न आवै ।
पिया बिन मेरी सेज अलूनी, जागत रैण बिहाधै ।
पिया कब रे घर आवै ।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल सबद सुणावै ।
घुमँट घटा ऊलर होइ आई, दामिन दमक डरावै ।
नैन झर लावै ।
कहा करूँ कित जाऊँ मोरी सजनी, बेदन कूण बुतावै ।
बिरह नागण मोरी काया डसी है, लहर लहर जिव जावै ।
जड़ी घस लावै ।
कोहै सखी सहेली सजनी, पिया कूँ आन मिलावै ।
मीराँ कूँ प्रभु कबर मिलोगे, मन मोहन मोहि भावै ।
कबै हँस कर बतलावै ।।75।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ढुलावै = इधर उधर डलाती फिरती है, बेचैन किये रहती है। पिया जोत = प्रियतम की ज्योति। मंदिर = मकान, घर। दाय = पसंद। अलूनी = फीकी वा असुन्दर। बिहावै = बीतती है। घुँमट = घूम घूम, इकट्ठी होकर। ऊलर होइ आई = चढ़ आई, झुक आई। कूण = कौन, किसके वश में है जो। बुतावै = शांत करे। नागण = नागिन, सर्पिण। लहर लहर = प्रत्येक झोंके पर। ( देखो - ‘लाओ गुनी गोविन्द की बाढ़ी है अति लहरि’ - सूरदास )। बतलावै = बातें करे।

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