राजत री बनमाल गरे हरि आवत बन तैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


राजत री बनमाल गरे हरि आवत बन तैं।
फूलनि सौं लाल पाग, लटकि रही बाम भाग, सो छबि लखि सानुराग, टरति न मन तैं।
मोर मुकुट सिर श्रीखंड, गोरज मुख मंजु मंड, नटवर बर बेष धरैं आवत छबि तैं।
सूरदास-प्रभु की छबि ब्रज-ललना निरखि थकित तन मन न्यौछावर करैं, आनँद बहुँ तैं।।1375।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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