राणा जी थे क्‍यांने राखो म्‍हांसूं बैर -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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राग अगना


राणा जी थे क्‍याँने राखो म्‍हाँसूँ बैर ।। टेक ।।
थे तो राणाजी म्‍हाँने इसड़ा लागो ज्‍यों ब्रच्‍छन में कैर ।
महल[1]अटारी हम सब त्याग्या, त्याग्यो थाँरो बसनो सहर ।
काजल[2]टीकी राणा हम सब त्याग्या भगवीं चादर पहर।
मीराँ[3]के प्रभु गिरधर नागर, इमरित कर दियो जहर ॥37॥[4]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मारू धर मेवाड़ मेरतो त्याग दियो थाँरो सहर ।
  2. थाँरे रूस्याँ राणा कुछ नहिं बिगड़ै, अब हरि कीन्ही मेहर ।
  3. मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हठ करि पी गई जहर ।
  4. क्याँ ने = क्यों, किसलिये। म्हाँसू = हमने, मुझसे। म्हाँने = मुझे। इसड़ा = ऐसे। व्रच्छन में = वृक्षों में। कैर = करील का पेड़। थाँरो = तुम्हारा। भगवीं चादर = भगवे का वस्त्र। इमरित = अमृत।

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