राधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ पृ. 277

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

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श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला

मंगलाचरण

(श्लोक)

कालिन्दीतटकुञ्जमन्दिरगतो योगीन्द्रवन्द्यपद-
ज्योतिर्ध्यानपरः सदा जपति यां प्रेमाश्रुपूर्णो हरिः।
केनाप्यद्भुतमुल्लसद्रतिरसानन्देन सम्मोहिता
सा राधेति सदा स्फुरतु मे विद्या पर द्वयक्षरा।।

अर्थ- योगींद्रन के समान जिनकी चरन-ज्योति के ध्यान-परायन होय कैं प्रेमाश्रु-पूर्ण नेत्र तथा गद्गद वाणी सौं कालिंदी तट के काहू निकुजं मंदिर में बिराजमान श्रीहरि हू स्वयं जा नाम कौ जप करें हैं। वे ही अनिर्बचनीय अदभुत उल्लासमय एवं रति-रसानंद सौं सम्मोहित ‘राधा’ इन द्वै अच्छरन की परा विद्या मेरे हृदय मे सदा स्फुरित रहै।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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क्रमांक विषय का नाम पृष्ठ संख्या
1. श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला 1
2. श्रीसाँझी-लीला 27
3. श्रीकृष्ण-प्रवचन-गोपी-प्रेम 48
4. श्रीगोपदेवी-लीला 51
5. श्रीरास-लीला 90
6. श्रीठाकुरजी की शयन झाँकी 103
7. श्रीरासपञ्चाध्यायी-लीला 114
8. श्रीप्रेम-सम्पुट-लीला 222
9. श्रीव्रज-प्रेम-प्रशंसा-लीला 254
10. श्रीसिद्धेश्वरी-लीला 259
11. श्रीप्रेम-परीक्षा-लीला 277
12. श्रीप्रेमाश्रु-प्रशंसा-लीला 284
13. श्रीचंद्रावली-लीला 289
14. श्रीरज-रसाल-लीला 304
15. प्रेमाधीनता-रहस्य (श्रीकृष्ण प्रवचन) 318
16. श्रीकेवट लीला (नौका-विहार) 323
17. श्रीपावस-विहार-लीला 346
18. अंतिम पृष्ठ 369

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