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उदय हुए जब श्रीवृन्दावन
- उदय हुए जब श्रीवृन्दावन-चन्द्र पूर्णतम चन्द्रस्वरूप।
- उज्ज्वल स्निग्ध सुधामयि शीतल किरणें लहरा उठीं अनूप।।
- पूर्ण पूर्णिमा प्रकटी पावन, हुआ अविद्या-तमका नाश।
- प्रेम-प्रभा हुई उद्भासित, छाया शुद्ध सत्त्व-उल्लास।।
- पावन यमुना-पुलिन प्रकट हो, छेड़ी मोहिनि मुरली-तान।
- किया श्याम ने प्रेममूर्ति व्रज-सुन्दरियों का प्रिय आह्वान।।
- भूल गयीं अग-जग को, भूलीं देह-गेह का सारा भान।
- जो जैसे थी, वैसे ही चल पड़ी, छोड़ लज्जा-भय-मान।।
- होता उदय मधुर रस नव-नव रूपों में जब कृष्णानन्द।
- रुक पाता न पलक प्रेमीका तब रस-लोलुप मन स्वच्छन्द।।
- नहीं खींच पाता फिर उसको भुक्ति-मुक्ति का कोई राग।
- प्रेम-सुधा-रस-मत्त दौड़ पड़ता, वह सहज सभी कुछ त्याग।।
- प्रियतम के प्रिय मधुर-नाम-गुण लीला-कथा सुधा-रस मग्न।
- सर्व-समर्पित होता उसका, होता सहज मोह-भ्रम भग्न।।
- राधामुख्या भावमयी सब व्रजसुन्दरियाँ कर अभिसार।
- पहुँचीं तुरत श्याम-चरणों में उन्मादिनी हो मधुर उदार।।
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