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श्रीवृन्दावन महिमामृतम् -श्यामदास
व्रजविभूति श्रीश्यामदास
‘श्रीश्यामलाल हकीम’
परिचय
नाम- श्री श्यामल हकीम (श्री श्यामदास), जन्म- 3 फरवरी सन् 1921, जन्म स्थान- डेरागाजीखान (अधुना पाकिस्तान में), वर्ण- क्षत्रिय। उपजाति- अरोड़ा (नांगिया), भाषा ज्ञान- हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत, फारसी। व्यवसाय - हकीम हाजिक की डिग्री प्राप्त करने के बाद अपने पैतृक सेवा-व्यवसाय यूनानी चिकित्सक के रूप में अपने पिता के साथ अपने जन्म नगर में चिकित्सा कार्य किया एवं ख्याति प्राप्त की। आप उस चिकित्सक परिवार से हैं, जिसमें रोगी के मूत्र या रोगी के कपड़े को देखकर ही रोग का निदान किया जाता था। आज से एक शताब्दी पूर्व तत्कालीन पंजाब प्रान्त के नगर डेरागाजीखान में स्वामी श्री इन्द्र भानुजी (श्री ललित लड़ैतीजी) के नाम से एक भक्त कवि हुए हैं, जो भक्ति-ज्ञान-वैराग्य के साक्षात मूर्त्तिमन्त एवं परम सिद्ध सन्त थे। श्री चैतन्य सम्प्रदाय के व्रजभाषी-कवियों में उनका नाम पर्याप्त आदर एवं सम्मान के साथ लिया जाता है। आपने श्री राधा-दासी भाव में अनेक पद्यात्मक रचनाएँ कीं। आपके लीला परक ग्रन्थ श्री किशोरी-करुणा कटाक्ष, श्री दम्पति विलास एवं श्री रासपन्चाध्यायी आपकी ब्रज निष्ठा, श्री राधा-कृष्ण दास्य एवं काव्य-प्रतिभा के परिचायक हैं। आपके जीवन-काल में अनेक लोगों ने आपके भक्ति-चमत्कार, सरल स्वभाव, विनम्रता एवं सहिष्णुता का साक्षात् दर्शन किया है। आपके ही वंश में राय साहब श्री रघुनाथदास जी हकीम एक व्रजनिष्ठ परम भक्त थे, श्री रघुनाथ दास जी एवं माता सीता देवी के घर में सन् 1921 में जन्मे एकमात्र सुपुत्र हैं श्री श्याम लाल जी हकीम ‘श्री श्याम दास’। श्री धाम वृन्दावन से आपके परिवार का पुराना सम्बन्ध था और आना-जाना था। आपके मन में श्री धाम वृन्दावन के दर्शन और निवास की लालसा बाल्यकाल से थी। अतः समय पाकर आप श्री वृन्दावन चले आते। यहाँ रहकर आप प्रिया-प्रीतम की लीलाओं का आस्वादन करते और महत् पुरुषों से कथा-श्रवण कर भजन की शिक्षा ग्रहण करते। चिकित्सा के क्षेत्र में ख्याति प्राप्त करने के साथ-साथ धार्मिक आचरण एवं धार्मिक गतिविधियों में भी आप विशेष रुचि रखते थे। वहाँ होने वाले परस्पर दैनिक सत्संग, संकीर्तन एवं प्रवचन में आप सदैव प्रमुख रूप से भूमिका निर्वाह करते थे। प्रवचन भी करते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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