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एक कृष्णप्रेमी के पत्र का उत्तर
- (पत्र)
मधुमास कृष्णैकादशी की संध्या
- परम-पूज्य प्रिय सखा, स्वामि, गुरु, हितू हमारे।
- श्रीहनुमानप्रसाद (जी) भाव के भोरे-भारे।।
- बंदौं चरन-सरोज सीस धरि सदा तुम्हारे।
- देहु इहै आसीम, बसैं हित जुगल हमारे।।
- छायौ अब कलिकाल घार, नहिं धर्म-लेस कहुँ।
- अनाचार, पाखंड, पाप बाढ़यौ देखत चहुँ।।
- कपटी, काग्रर, कुटिल, कामबस, अतिसै क्रोधी।
- बाढ़े चोर, जुवार, विप्र-गुरु-संत-बिरोधी।।
- तिन के मधि बसि रहन कठिन जिमि दसनन जीहा।
- साँच कहै, है मरन, मिलन पिय कठिन अलीहा।।
- ताहू पै त्रैताप घोर सौं तपत सदा तनु।
- ऐसे भीषन बिपति-काल नहिं कोउ अवलंबनु।।
- होते जौ संसारी तो यह सब सहि लेते।
- काहू कौ उपकार-भार नहिं सिर पै लेते।।
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