संग ब्रजनारि हरि रास कीन्हौ।
सवनि की आस पूरन करी स्याम लै, तियनि पिय हेत सुख मानि लीन्हौ।।
मेटि कुलकानि मरजाद बिधि-बेद को त्यागि गृह नेह, सुनि बेनु धाई।
फबी जे-जे करी, मनहिं सब जे धरी, संक काहु न करी आपु भाई।।
ज्यौं महामत्त गज जूथ-करिनी लिये, कूल-सर फोरि डर नाहिं मानै।
सूर-प्रभु नंद-सुत निदरि निसि रस करयौ, नाग-नर-लोक-सुर सबै जानै।।1135।।