हँसत चले तब कुँवर कन्हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


हँसत चले तब कुँवर कन्हाई।
मन के करे मनोरथ पूरन, राधा के सुखदाई।।
उत हरषत हरि भवन सिधारे, नागरि हरष बढ़ाई।
इत आवति सुधि मुकुर बिलोकनि, जब तब रहति लजाई।।
इहिं अंतर सखियनि सँग लीन्हे, चंद्रावलि तहँ आई।
'सूर' तुरत राधिका सबनि कौ, आदर करि बैठाई।।2208।।

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